14 नए-नए रचनाकारों की रचना सरल मनोरम है. विम्ब विधान भी गढ़ते अच्छा सहज-सहज आलोहन है। मुक्त भाव से नवांकुर की गोष्ठी पांव पसारे है. कितने सावन देख चुके हैं -सावन दृश्य सुहावन है। आगे-आगे बढ़ते जाते कविता तो मनभावन है। नवांकर काव्य गोष्ठी की श्रृंखला लगातार जारी है। शहर समता विचार मंच ने निर्णय लिया है कि अब प्रत्येक दूसरे माह नवांकुर काव्य गोष्ठी होगी। गीत,कविता और मुक्तक से लगातार नवांकुर कवि अपनी सरलता सहजता का आभास दे रहे है। काव्य प्रतिभा में अनुभव,अनुभूति की गूंज बराबर हो रही है। बड़े कवि भी कभी-कभी बही-बड़ी कविता लिखने के बाद गड़बड़ा जाते हैं लेकिन उन्हें कोई कुछ बोलने वाला नहीं हैं।बात कविता और उसकी भाषा बारे में तो 'कुछ पत्ते कुछ चिट्ठियाँ (१९८९) के निवेदन में रघुवीर सहाय ने लिखा है, भाषा के अनेक प्रकारों पर व्यावसायिक और राजनीतिक कब्जे ने भाषा की रचनात्मकता को अनेक प्रकार से विकृत और कुंठित किया है, नयी प्रतिभा को सामयिक चेतना के विषय में बल पूर्वक अशिक्षित करके मनुष्यों के बीच साझेदारी के संबंध तोहे हैंऔर उनकी जगह बनावटी रागात्मकता के नये समझौते आरोपित किये है.जो उसके किसी पक्ष को कोई आत्मिक बल नहीं देते। वे प्रत्येक अनुभव को एक सनसनी और (साहितरार (शहर समता समाचार पत्र 289/238ए.(अनंतभवन) कर्नल प्रत्येक मनुष्य को एक वस्तु बनाते चले जाते है। इस ध्वंस -व्यापार का प्रतिष्ठान भी प्रतिभा को लगातार लुभाता और पथभ्रष्ट करता रहता है। रचनात्मकता के विरूद्ध इतना बड़ा अभियान आजादी के बाद पहली बार एकत्र शक्तियों ने चलाया है। जिसका फल यह हुआ कि तब से लेकर आज तक रचनाकार सामूहिक सरोकारों से उदासीन होकर आत्मकेन्द्रित हो गये है और उनके बीच व्यक्तिवादी और कभी -कभी व्यक्तिगत सरोकार केन्द्रीय महत्व प्राप्त कर गये। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे वर्तमान के प्रति उदासीन है। वे आज पूंजीवादी व्यवस्था में आम आदमी की छटपटाहट उसकी दुर्दशा,पीड़ा, यातना और विवशता को अनुभव करते हैं. और उसका बड़ी बारीकी के साथ चित्रण करते हैं। नवांकुर काव्य गोष्ठी की अब तक की श्रृंखला में इस तरह के कई सूक्ष्म और व्यापक दृष्टियों का चित्रांकन हो रहा है। और अब हम नवांकुर काव्य गोष्ठी के तीनों समीक्षकों शिवमूर्ति सिंह, डॉ.शंभुनाथ त्रिपाठी अंशुल' और इसी बार से प्रवेश कर रहे डॉ. रवि कुमार मिश्र का आभार व्यक्त करूँगा कि बिना आपके सहयोग से नवांकुर काव्य गोष्ठी अपनी यात्रा सम्पन्न नहीं कर पायेगी। आपका सहयोग बराबर मिलता रहेगा तो नवांकुर काव्य गोष्ठी अपने सापेक्ष उद्देश्य की तरफ अग्रसर होती जायेगी। और अन्त में - राग -विराग का मोह सुहावन लगता है, नवांकुर का रस भी सावन लगता है। कहो कहां से बात उठाये और कहें कविता का सब भाव ही पावन लगता है। सहज
नवांकुर काव्य गोष्ठी